Saturday, July 4, 2020

                                                   हमें क्रूर नायक ही पसंद है 
 

हम मानसिक रूप से हिंसक समाज हैं, जिसे क्रूर नायक ही पसंद आता है। 

कानपुर में घात लगाकर पुलिसकर्मियों की हत्या करने जैसी दुस्साहसिक वारदात को अंजाम दे चुके विकास दुबे की मां के सामने मीडिया की माइक है, वह कहती हैं कि लड़के को मार डालो। बेटे की ही दी हुई लग्जरी ज़िन्दगी भोगते हुए फिलहाल वह माइक का पक्ष चुनती हैं। परिस्थिति भांपते हुए ऐसा करना लाज़िम भी लगता है। गांव में बाप अब भी कह रहा है कि बेटा उनका बेकसूर है। कहे भी क्यों ना? यह वही बाप हैं, जिनके कथित अपमान का बदला लेने विकास ने दूसरे गांव में घुस कर लोगों को मारा था। बस फिर जिसके बाद विकास अपनी सीढ़ियां चढ़ता गया। श्रीप्रकाश शुक्ल की तरह। उसने भी तो बहन का बदला लेने के बाद जिस रास्ते को चुना, तो फिर मुड़ कर नहीं देखा।

यहीं गोरखपुर का एक लड़का श्रीप्रकाश, जो अब वेबसाइट्स से लेकर वेब सीरीज तक का पोस्टर बॉय बना हुआ है। जब तक जिंदा रहा सगे संबंधी मौज में रहे, लंबी गाड़ियों में घूमते रहे। जब किस्सा खत्म हुआ, तब वे ही लोग उसके खात्मे को समाज के लिए सही बताने लगे। श्रीप्रकाश के गिरेबान तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंचते थे। क्योंकि समाज ने उसे नायक का दर्जा दे दिया था। ऊपर से जाति का कॉकटेल। ये विकास क्यों हमेशा बचता रहा? तमाम फायदों के लिए संरक्षण दिया गया हमेशा से। दरअसल श्रीप्रकाश और विकास जैसों के ढाल तैयार रहते हैं। उनसे जुड़ा वर्ग चाहता ही नहीं कि वह मारे जाएं, बल्कि सच तो यह है कि उनसे उम्मीद की जाती है कि वे लाशें गिराते रहें। दुबे भी ट्रकों को लूट कर माल अपने गांव में बंटवा देता था। बदले में उसे समर्थन मिलता रहा और आज इतने वीभत्स कांड के बाद छाई चुप्पी से कर्ज अदायगी भी की जा रही है।

बात केवल इन्हीं दोनों की नहीं। तमाम मुख्तार, ब्रजेश, अतीक, पंडित, सूरजभान हैं, जिन्हें अपने अपने समुदाय में रहनुमा माना जाता है। ये ऐसे नाम हैं, जिन्हें फेम हासिल है। नहीं तो ऐसे छोटे बड़े जाने कितने ही विकासों के उदाहरण, यहीं इसी पूर्वांचल में ही फैले हुए हैं।  

एक तो हर स्तर पर मिल रही शह। दूसरा पॉलिटिक्स-क्राइम-पुलिस का सिंडिकेट। यह बहुत गहरे जड़ें जमाए हुए है। अब तो जुर्म को सहज बोध बनाया जा चुका है। अपराधियों को खुलेआम स्वीकार भी किया जा रहा है। हमें भी यही हिंसा, यही क्रूरता भाती है। हमने अपने नायकों का स्वरूप तय किया हुआ है। 

और हम अपने मन में भरी इस हिंसा को कभी खुलकर स्वीकार नहीं करेंगे।   



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